Sunday, October 16, 2016

जो कमी तुझमे है मुझमे है

यह जो खो देने का भय है
या फिर कुछ पाने की इच्छा है
ठीक वैसी, जैसी तुझमे है
मुझमे भी है।
मुझसे अलग नही है
यह करुण विलाप
जो तेरे हृदय से उठा है
चक्षु अलग हैं
अश्रुधार वही है
वही पीर सिंधु जो तुझमे है
मुझमे भी है
नही जानता कौन हो तुम
क्या नाम है तुम्हारा
क्या पंथ है क्या जात है
दर्द से उबरने की शक्ति
जैसी तुझमें है
मुझमे भी है।
अविस्मरणीय है
किसी “अस्पताल” में
सत्य का यह साक्षात्कार
स्वयं को समझने में कमी
जैसी तुझमे है
मुझमे भी है।

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो कैसे जानोगे तुमने देखा ही नही अपने अंतर्मन में कभी। हर्ष विषाद से आच्छादित अनंत असीमित किंतु अनुशासित बेहद सहज सरल धवल उज्...