टूट गए सब नेह के नाते
टूट गया विश्वास
अर्थ नही फिर जीवन का
ना बाकी कोई आस
अब पीड़ा को अपनाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो
दीप जलाया जो दुख का
रोशन है पीड़ा का आंगन
अब दर्द लिखूं या दीप लिखूं
ब्याकुल मन की है ये उलझन
इस उलझन को सुलझाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में
नही मिले भगवान
जिसने सच्ची राह दिखाई
वो झूठा इंसान
अब अंतर्मन को जगाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।
अंतर्मन पर मन भारी है
यह कैसा अज्ञान
बांध सकूं निज मन का विप्लव
दया करो हे दयानिधान
मेरा मुझको हो जाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"