Thursday, August 30, 2018

ना रोको मुझे अब जाने दो

टूट गए सब नेह के नाते
टूट गया विश्वास
अर्थ नही फिर जीवन का
ना बाकी कोई आस

अब पीड़ा को अपनाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो

दीप जलाया जो दुख का
रोशन है पीड़ा का आंगन
अब दर्द लिखूं या दीप लिखूं
ब्याकुल मन की है ये उलझन

इस उलझन को सुलझाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में
नही मिले भगवान
जिसने सच्ची राह दिखाई
वो झूठा इंसान

अब अंतर्मन को जगाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।

अंतर्मन पर मन भारी है
यह कैसा अज्ञान
बांध सकूं निज मन का विप्लव
दया करो हे दयानिधान

मेरा मुझको हो जाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।

-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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