Tuesday, January 15, 2019

चीनी का बोरा

लहजे में फिजा में
मिठास है घर मे
शीतल सुमन सुवास है
प्रभास है घर में।

गमो की घुड़दौड़ पर
नन्ही लगाम है
सुबह सुहानी
मदमस्त शाम है।

हवा सम्हल जा
तुनकमिजाज है घर में
पंख नही है मगर
परवाज़ है घर में।

नन्ही है नटखट
चिरैया सी है
फुदकती आंगन में
गौरइया सी है।

मासूम से सवाल है
जवाब हैं घर में
स्लेट है कापी कलम
किताब है घर में।

सिक्कों भरी गुल्लक है
इतवार का दिन है
आज खिलौनों के
बाजार का दिन है।

नाजुक सी मिन्नतों का
दरबार है घर में
क्या लूँ कि अभी
चीजों का अंबार है घर में।

कौन अधिक प्रिय है
मीठी तकरार है
बेटे से शुकून है
कि बेटी से करार है।

नाराज है कोई
फिर आवाज है घर में
रूठने मनाने का
रिवाज़ है घर में।

नित नए नाम से
पिटता ढिंढोरा है
याद है किसी ने कहा
वो 'चीनी का बोरा' है।

तू है नही मगर
तेरी पुकार है घर में
तेरे बिना सूना
संसार है घर मे।

(यह कविता मेरी छोटी बहन कवियित्री सीमा वर्मा'अपराजिता' और उसकी सुंदर स्मृतियों को समर्पित है।)

-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

No comments:

Post a Comment

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो कैसे जानोगे तुमने देखा ही नही अपने अंतर्मन में कभी। हर्ष विषाद से आच्छादित अनंत असीमित किंतु अनुशासित बेहद सहज सरल धवल उज्...