अनल की लपट
धधकती झपट
देह कर भस्म
निभाती रस्म
हृदय उदगार
जीव की पुकार
पीर प्रतिकार
खत्म चीत्कार
कर्म का लेख
नियति उल्लेख
जिधर भी देख
भ्रम मति रेख।
अनल की लपट
हुई है प्रकट
करो स्वीकार
सत्य साकार
आत्म संगीत
बोध का गीत
हृदय में झांक
पीर को ताक
मिला क्या है
गिला क्या है
अनल की लपट
दैव की रपट
ब्यर्थ की ब्याधि
अंत है आदि
तुम्हारा कथ्य
तुम्हारा सत्य
तुम्ही तुम हो
कहाँ गुम हो
निरख जग बसि
तत त्वम असि।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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