Monday, February 19, 2024

तेरी बातें

तेरी बातें तेरी यादें

तेरा हंसना रोना भूलूँ

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झूलूँ।


रिमझिम सावन लाख लुभाये

मंद मंद पुरवा मुस्काये

कोयल कूके पपीहा गाये

हरियाली धरती लहराए।

अंतर्मन के काव्य कुंज में

जब तक शब्दों से न छू लूँ

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झुलूँ।


तेरा आना तेरा जाना

आना जाना हो सकता है।

लोक लाज के व्यसनों का

संदूक पुराना हो सकता है।

हिय सिंधु की गहराई में

प्रेम मौक्तिक अलौकिक को

कोमल मृदु भावों से क्यों ना

नेत्र सजल में धारण कर लूँ।

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झूलूँ।


          -देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

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