बदल रहा है घटनाक्रम
वक़्त कहे तुझे भूले हम,
पाकर खोया है एक दिन
फिर से पा जाओगे तुम।
दुख की स्मृतियों से बाहर
सुख की कलियों में देखो,
यहीं कहीं वो आस पास है
हरे रहो मत तन से सूखो।
कण-कण में उसका सुवास है
हृदय में रहती है वो हरदम,
जिसकी काया में तुम हो गुम
वो ही है तेरी काव्य कुसुम।
पाँव लटकाए बैठी चांद पर
जितनी चाहे बात करो,
सारी रात तुम्हारी है
शब्दों से संवाद करो।
रूठे तो मनाओ तुम
गीतों में बसाओ तुम,
नित्य निरंतर आनंदित हो
खुद में उसको पाओ तुम।
लाख हवा के झोंके आएँ
मंद मधुर तन मन महकाए,
हृदय कुंज जो आच्छादित है
नहीं कोई खाली कर पाए।
जब प्रेम पृष्ठ पर चले कलम
तब वह मुस्कायेगी अनुपम,
जब दीप जलेंगे गीतों के
तो खो जाएगा पथ का तम।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
No comments:
Post a Comment