बस इतनी सी बात हुई है
बातें सारी रात हुई है
सुलझे थे जो उलझे हैं अब
कैसी ये मुलाकात हुई है।
प्रेम मुखर होता है जब भी
खामोशी चिल्लाती है
तन्हा रहने वाले को भी
तन्हाई न भाती है
डूब ख़यालो में तेरे वो
खुद से बातें करता है
तेरा एक ठिकाना
उसके दिल में
तू अब रहता है
तन महके सोंधी मिट्टी सा
ज्यों पहली बरसात हुई है।
नर्म बिछौने हो रेशम के
नींद नही फिर आने वाली
प्रियतम से दूरी की रातें
होगी बड़ी सताने वाली
हृदय सिंधु का सृजन प्रेम की
व्यापकता का सार रहा
प्रेम अश्रु की प्रथम बूंद ने
पलकों से पुचकार कहा
इक दौर चलेगा अश्कों का
अभी तो बस शुरुआत हुई है।
कल तक जो बेगाना था
वो भी अपना सा लगता है
नफरत का संसार बृहद था
अब अदना सा लगता है।
लड़ कर जीत न पाया उनको
सिर अपना कई बार धुना
पत्थर पिघल गए राहों के
जब फूलों का हार चुना।
धूप छांव के मधुर मिलन की
नित्य नई प्रात हुई है।
बस इतनी सी बात हुई है
बातें सारी रात हुई है।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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