Thursday, August 30, 2018

ना रोको मुझे अब जाने दो

टूट गए सब नेह के नाते
टूट गया विश्वास
अर्थ नही फिर जीवन का
ना बाकी कोई आस

अब पीड़ा को अपनाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो

दीप जलाया जो दुख का
रोशन है पीड़ा का आंगन
अब दर्द लिखूं या दीप लिखूं
ब्याकुल मन की है ये उलझन

इस उलझन को सुलझाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में
नही मिले भगवान
जिसने सच्ची राह दिखाई
वो झूठा इंसान

अब अंतर्मन को जगाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।

अंतर्मन पर मन भारी है
यह कैसा अज्ञान
बांध सकूं निज मन का विप्लव
दया करो हे दयानिधान

मेरा मुझको हो जाने दो
ना रोको मुझे अब जाने दो।

-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

वो पल

हां..ये वही खेत है
वही आम का पेड़ है
जिसकी टहनियों की
बाहें थामे
मुस्कुराती हुई सी तुम
बेहद चंचलता से
टहनियों के बीच से
झांकती
मुझे आवाज देती
उस एक पल को
कैद करने की
जिद करती

हां..कैद है वो
पल मेरी आंखों में
ठीक वैसे ही
जैसे तुम चाहती थी
और कैद हो गई हो
तुम भी बिल्कुल
उस पल की तरह
मेरी आँखों मे
मेरे हृदय में
जब चाहूं
जहां चाहूं
तुम्हे देख सकता हूँ
तुमसे बातें कर सकता हूँ

और तुम मिलोगी
वहीं पर मुझे
हर बार,बार बार
वैसे ही मुस्कुराती हुई
आम की टहनियों की
बाहें थामे ।

(सीमा वर्मा"अपराजिता"की स्मृति में।)

-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

Tuesday, August 28, 2018

गई तू कहाँ छोड़ के

*गई तू कहाँ छोड़ के*

सावन सूना पनघट सूना
सूना घर का अंगना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।

दिन चुभते हैं काटों जैसे
आग लगाए रैना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।

बचपन के सब खेल खिलौने
यादों की फुलवारी
खुशियों की छोटी साइकिल
पर करती थी तू सवारी

विरह,पीर के पलछिन देकर
हमें रुलाए बिधना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।

बाग बगीचे अमराई में
पपीहा कोयल कूके
सखियों के संग हंसी ठिठोली
करती तू मन मोहे

दे तुझको आशीष सभी
तू ऐसे हंसती रहना।

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।

इंद्रधनुष सी रंग बिरंगी
सपनो की तस्वीरें
अरमानो की चूनर ओढ़े
बुनती है तदबीरें

जब तक आस न हो पूरी
अब नही है दिल मे चैना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के ।।

ग़म के बादल गरज बरस कर
रोज भिगोते दामन
पीर पहाड़ सी बांधे तन को
ब्याकुल मन का मधुबन

कहाँ छिपाऊँ तुझको कोई
जुगत है बाकी अब ना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।।

गुजरे कितने दिन राखी के
कितने बांधे धागे
फिर भी साथ तुम्हारा छूटा
हम है बड़े अभागे

हाय ! तुम्हारी सौ टूटी
अब अश्रु पलक पर हैं ना

बहना गई तू कहाँ छोड़ के।।

छोटी बहन सीमा वर्मा"अपराजिता" की स्मृति में आज रक्षाबंधन के दिन हृदय के उदगार।

देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"😭😭

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो कैसे जानोगे तुमने देखा ही नही अपने अंतर्मन में कभी। हर्ष विषाद से आच्छादित अनंत असीमित किंतु अनुशासित बेहद सहज सरल धवल उज्...