हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे मैं ग़मजदा हूँ।
बंदिशें यातनाएँ रुदन विरह पीड़ा,
हर एक दाँव से हाँ तुझको छला हूँ।
तेरे साथ उड़ने की ख्वाहिश गगन में,
हाथ चलना पकड़ कर बहारे चमन में।
मेरा श्रृंगार बन मन अलंकृत किया,
निज श्रद्धा से हर क्षण पुरस्कृत किया।
प्रीत की छाँव में तू समर्पित धरा,
मैं तेरी आरजू पे न उतरा खरा हूँ,
हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।
तेरे दुःख के आँसू मेरी आँख में,
मेरी हर एक कराह तेरी साँस में।
तूने शिद्दत से रस्में निभाई वफ़ा की,
मैं ही उलझा रहा सिर्फ परिहास में।
तेरी पूजा, तेरी दुआओं के दम से,
दुखों के कहर से अभी तक बचा हूँ,
हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।
घाव इतने मिले रूह छलनी हुई,
त्रस्त मानव से आज मानवी हुई।
झूठी संवेदना का भरम ही मिला,
लड़ रही है अस्मिता बचाती हुई।
जाने कब तुझसे नज़रें मिला पाऊँगा,
तेरा होकर भी जो तेरा न हो सका हूँ,
हमसफर तेरा भाई मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।
मैं मन से दुर्बल हूँ तू सहनशील है,
शक्ति संयम सरलतम और सुशील है।
श्राप मेरी दुर्बलता का तुझको मिला,
किन्तु प्रतिबद्ध प्रेम को तू गतिशील है।
हीन हूँ दीन हूँ निर्लज्जता में प्रवीन हूँ,
बंदिशों में तुझे फिर भी बाँध रखा हूँ,
हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे, मैं ग़मज़दा हूँ।
एक होंगे कब हमारे तुम्हारे सफर,
एक पहचान हो एक सा हो असर।
सत्य सद्भाव हो एक दूजे के प्रति,
दौरे खुशहाल हो ज़िन्दगी की बसर।
मेरा निर्णय करो भाव निष्पक्ष से,
सिर झुकाए तेरे सम्मुख खड़ा हूँ,
हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,
मगर तेरी हालत पे, मैं ग़मज़दा हूँ।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'