Monday, February 19, 2024

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो

कैसे जानोगे

तुमने देखा ही नही

अपने अंतर्मन में कभी।


हर्ष विषाद से आच्छादित

अनंत असीमित

किंतु अनुशासित

बेहद सहज सरल

धवल उज्ज्वल

प्रतिपल तुम्हारे

इंतजार में

तुम्हारे हाथ थामे

बाहर आने को बेकरार

जैसे हवाओं के संग खुशबू

लाती है फिजा में बहार।


क्या तुम मानते हो

कैसे मानोगे

तुम्हारा यह व्यवहार

प्रतिपल ऐसा तिरस्कार

मुझे रोक लेता है

पाने नही देता है तुम्हें

मैं जो तुम्हारी

अपनी जिंदगी हूँ

हाँ....

मैं जो तुम्हारी

अपनी जिंदगी हूँ।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

आ जाओ

आ जाओ 

मेरी प्यारी बहना 

तुझसे बिछड़कर 

नहीं मुझको रहना। 

तुझ बिन अधूरी है 

जीवन की सरगम 

तू बनके ख़ुशबू 

महकती थी हरदम। 


गीतों की माला के 

एक गीत जैसा 

नहीं चाहता 

गुनगुनाते ही रहना।   

आ जाओ 

मेरी प्यारी बहना 

तुझसे बिछड़कर 

नहीं मुझको रहना। 

-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

बात है बात की

बात कुछ भी नही

बात है बात की 

तेरी मेरी पुरानी 

मुलाक़ात की। 


मुझको जाते हुए 

तुमने रोका नहीं 

तेरे आँसू बहे 

मैंने टोका नहीं। 


द्वार पर तुम खड़ी 

द्वार भी रो पड़ा 

हे विधाता ये कैसा 

समय आ पड़ा 


दुख विरह वेदना 

और संताप की 

कैद क्यों हो गई 

वो घड़ी रात की। 

बात कुछ भी नही

बात है बात की ॥ 


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

तेरी बातें

तेरी बातें तेरी यादें

तेरा हंसना रोना भूलूँ

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झूलूँ।


रिमझिम सावन लाख लुभाये

मंद मंद पुरवा मुस्काये

कोयल कूके पपीहा गाये

हरियाली धरती लहराए।

अंतर्मन के काव्य कुंज में

जब तक शब्दों से न छू लूँ

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झुलूँ।


तेरा आना तेरा जाना

आना जाना हो सकता है।

लोक लाज के व्यसनों का

संदूक पुराना हो सकता है।

हिय सिंधु की गहराई में

प्रेम मौक्तिक अलौकिक को

कोमल मृदु भावों से क्यों ना

नेत्र सजल में धारण कर लूँ।

कैसे मुमकिन है तुझ बिन मैं

खुशियों के झूले पर झूलूँ।


          -देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

बस इतनी सी बात हुई है

बस इतनी सी बात हुई है

बातें सारी रात हुई है

सुलझे थे जो उलझे हैं अब

कैसी ये मुलाकात हुई है।


प्रेम मुखर होता है जब भी

खामोशी चिल्लाती है

तन्हा रहने वाले को भी

तन्हाई न भाती है

डूब ख़यालो में तेरे वो

खुद से बातें करता है

तेरा एक ठिकाना

उसके दिल में

तू अब रहता है

तन महके सोंधी मिट्टी सा

ज्यों पहली बरसात हुई है।


नर्म बिछौने हो रेशम के

नींद नही फिर आने वाली

प्रियतम से दूरी की रातें

होगी बड़ी सताने वाली

हृदय सिंधु का सृजन प्रेम की

व्यापकता का सार रहा

प्रेम अश्रु की प्रथम बूंद ने

पलकों से पुचकार कहा

इक दौर चलेगा अश्कों का

अभी तो बस शुरुआत हुई है।


कल तक जो बेगाना था

वो भी अपना सा लगता है

नफरत का संसार बृहद था

अब अदना सा लगता है।

लड़ कर जीत न पाया उनको

सिर अपना कई बार धुना

पत्थर पिघल गए राहों के

जब फूलों का हार चुना।

धूप छांव के मधुर मिलन की

नित्य नई प्रात हुई है।


बस इतनी सी बात हुई है

बातें सारी रात हुई है।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

मेरी यादों की गुल्लक

ठहर जाओ चाँद तारों

ठहर जाओ रात

ठहर जाओ साजन

अभी देर है बहुत

होने में प्रात।


कर लेने दो मुझे

मेरे हिस्से का श्रम

जानती हूँ नही है

और कोई उपक्रम

वक़्त की इक इक पाई

कमाने दो

कतरा कतरा सहेज कर

लाने दो

हमारे साथ गुज़रे

खूबसूरत लम्हो के

सिक्को से भर जाने दो

अभी खाली है

जानते हो न

अभी खाली है

मेरी यादों,जज्बातों

एहसासों की गुल्लक

जो बहुत काम आएगी

तुम्हारे

मेरे साजन

मेरे जाने के बाद।


जब कभी तुम होगे

बहुत खाली बहुत उदास

मेरे स्पर्श, मेरी संवेदना,

मेरे एहसास को

ढूंढते

ख्वाबो के जंगल

में थके टूटे हारे

चांद तारों को निहारते

प्रात का पंथ बुहारे

नही पाओगे मुझे

कहीं भी

जब कभी

तो फोड़ लेना मेरी

यादों की ये गुल्लक।


इसमे जमा

लम्हो के सिक्कों से

तुम जरूर

खरीद पाओगे

वक़्त के बाजार से

मेरी हसीन झिलमिलाती

मुस्कुराती यादें

जो भर देगी

तुम्हारी उदासी

तुम्हारे खालीपन को

शुकून से, उमंग से

आनंद से।


मैं जानती हूँ

मेरी यादों,जज्बातों

एहसासों की गुल्लक

बहुत काम आएगी

तुम्हारे

मेरे साजन

मेरे जाने के बाद ।।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

बापू अपनी छाया का हमको भी आशीष कमल दो

बापू अपनी छाया का

हमको भी आशीष कमल दो।

हम नन्हे सत्पथ के राही

सत्पथ का साहस संबल दो।

चक्षु पटल के बाहर भीतर

अच्छाई देखे हम हर पल ।

मुख से सत्य वचन ही निकले

कानो में स्वर गूंजे सच के ।

बुरे कहीं भी नजर न आये

अच्छे को इतना फैलाये ।

बुरी नही है कोई स्थिति

अच्छाई की है अनुपस्थिति।

है केवल इक दीप जलाना

अंधकार को है मिट जाना।

तेरी बात समझ मे आती

सत्याग्रह का मर्म बताती।

पुष्प अहिंसा के खिल जाएं

जीवन महके और महकाये।

बापू जग की माया का

हमको भी अभिनव दर्पण दो।

सत्य प्रतिष्ठित कर पाए हम

दृढ़ संकल्प समर्पण दो।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

चिता

अनल की लपट

धधकती झपट

देह कर भस्म

निभाती रस्म

हृदय उदगार

जीव की पुकार

पीर प्रतिकार

खत्म चीत्कार

कर्म का लेख

नियति उल्लेख

जिधर भी देख

भ्रम मति रेख।


अनल की लपट

हुई है प्रकट

करो स्वीकार

सत्य साकार

आत्म संगीत

बोध का गीत

हृदय में झांक

पीर को ताक

मिला क्या है

गिला क्या है

अनल की लपट

दैव की रपट

ब्यर्थ की ब्याधि

अंत है आदि

तुम्हारा कथ्य

तुम्हारा सत्य

तुम्ही तुम हो

कहाँ गुम हो

निरख जग बसि

तत त्वम असि।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

यादें

दिन गुज़रते रहे रात कटती रही,

तू सितारों में झिलमिल चमकती रही।


तुझको खोया है जो पा भी जाऊँगा पर

फिर से ऐसी अधूरी कहानी न हो,

एक घड़ी हो मुकम्मल मुलाकात की

उम्र सारी विरह में बितानी न हो।


तेरे जाने से सुलझी हुई ज़िन्दगी,

ग़म के धागों में फँसकर उलझती रही।


वक़्त के जोर से सब बदल सा गया

गीत खुशियों के आंगन में बजने लगे,

इक नई साज सज्जा सुसज्जित हुई

ख़्वाब सारे हकीकत में सजने लगे।


बूढ़े पीपल से माँगी मनौती तेरी,

मेरे दामन को खुशियों से भरती रही।


प्रेम वरदान है ज़िन्दगी के लिए

नफरतों के जहर से बचाना प्रिये,

प्रेम का रूप हो प्रेम के रूप में

फिर मेरी ज़िन्दगी में आना प्रिये।


भूल सकता नहीं भूलकर भी कभी,

प्रेम की बाँसुरी में तू बजती रही।


दिन गुज़रते रहे रात कटती रही,

तू सितारों में झिलमिल चमकती रही।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

फिर रही है आसमा में

फिर रही है आसमा में

ख्वाबों की परियाँ जमीं की,

मैं अंधेरों से घिरा हूँ

तुम किरण हो रोशनी की।


तुमने दिखाए दृश्य वे

जिसने मुझे जीवन दिया,

आँखों में आँखें डालकर

बात की मेरी कमी की।


सोते हुए को क्या खबर कि

जागना क्या चीज है,

जागृति के अंकुरण पर

तुम परत सी हो नमी की।


पाके तुझको मैं जगत में

भूल बैठा हूँ स्वयं को,

मेरे अहम का नाश कर

तुम गुरु हो छवि सखी की।


हो क्षमा के योग्य न

तो भी क्षमा करना मुझे,

है मुझे अफसोस अपनी

की हुई हर गलती की।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे मैं ग़मजदा हूँ।

बंदिशें यातनाएँ रुदन विरह पीड़ा,

हर एक दाँव से हाँ तुझको छला हूँ।


तेरे साथ उड़ने की ख्वाहिश गगन में,

हाथ चलना पकड़ कर बहारे चमन में।

मेरा श्रृंगार बन मन अलंकृत किया,

निज श्रद्धा से हर क्षण पुरस्कृत किया।


प्रीत की छाँव में तू समर्पित धरा,

मैं तेरी आरजू पे न उतरा खरा हूँ,

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।


तेरे दुःख के आँसू मेरी आँख में,

मेरी हर एक कराह तेरी साँस में।

तूने शिद्दत से रस्में निभाई वफ़ा की,

मैं ही उलझा रहा सिर्फ परिहास में।


तेरी पूजा, तेरी दुआओं के दम से,

दुखों के कहर से अभी तक बचा हूँ,

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।


घाव इतने मिले रूह छलनी हुई,

त्रस्त मानव से आज मानवी हुई।

झूठी संवेदना का भरम ही मिला,

लड़ रही है अस्मिता बचाती हुई।


जाने कब तुझसे नज़रें मिला पाऊँगा,

तेरा होकर भी जो तेरा न हो सका हूँ,

हमसफर तेरा भाई मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे मैं ग़मज़दा हूँ।


मैं मन से दुर्बल हूँ तू सहनशील है,

शक्ति संयम सरलतम और सुशील है।

श्राप मेरी दुर्बलता का तुझको मिला,

किन्तु प्रतिबद्ध प्रेम को तू गतिशील है।


हीन हूँ दीन हूँ निर्लज्जता में प्रवीन हूँ,

बंदिशों में तुझे फिर भी बाँध रखा हूँ,

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे, मैं ग़मज़दा हूँ।


एक होंगे कब हमारे तुम्हारे सफर,

एक पहचान हो एक सा हो असर।

सत्य सद्भाव हो एक दूजे के प्रति,

दौरे खुशहाल हो ज़िन्दगी की बसर।


मेरा निर्णय करो भाव निष्पक्ष से,

सिर झुकाए तेरे सम्मुख खड़ा हूँ,

हमसफर, तेरा भाई, मैं तेरा सखा हूँ,

मगर तेरी हालत पे, मैं ग़मज़दा हूँ।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

समय और प्रेम

बदल रहा है घटनाक्रम

वक़्त कहे तुझे भूले हम,

पाकर खोया है एक दिन

फिर से पा जाओगे तुम।


दुख की स्मृतियों से बाहर

सुख की कलियों में देखो,

यहीं कहीं वो आस पास है

हरे रहो मत तन से सूखो।


कण-कण में उसका सुवास है

हृदय में रहती है वो हरदम,

जिसकी काया में तुम हो गुम

वो ही है तेरी काव्य कुसुम।


पाँव लटकाए बैठी चांद पर

जितनी चाहे बात करो,

सारी रात तुम्हारी है

शब्दों से संवाद करो।


रूठे तो मनाओ तुम

गीतों में बसाओ तुम,

नित्य निरंतर आनंदित हो

खुद में उसको पाओ तुम।


लाख हवा के झोंके आएँ

मंद मधुर तन मन महकाए,

हृदय कुंज जो आच्छादित है

नहीं कोई खाली कर पाए।


जब प्रेम पृष्ठ पर चले कलम

तब वह मुस्कायेगी अनुपम,

जब दीप जलेंगे गीतों के

तो खो जाएगा पथ का तम।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

तेरी परछाई

 तुम ताकत थे मेरी

अब है बस मजबूरी।

देख न पाता कोई,

मुझमे तू है सोई।


तेरा यूँ मुस्काना,

फिर दिल में छुप जाना।

एक पल अच्छा लगता,

बेसुध हो तन हँसता।


है जो अब खामोशी,

मैं हूँ इसका दोषी।

मेरे घर जो आई

है तेरी परछाई।


कहते हैं सब भाई,

खुशियाँ फिर से आई।

लेकिन कुछ है टूटा,

कोई तो है रूठा।


तुझे मनाऊँ कैसे,

तुझे जगाऊँ कैसे।

उसकी मुस्कानों में तू,

मेरे अरमानो में तू।


क्या से क्या बना दिया,

जो तूने मुझे क्षमा किया।

तुम ही आई हो फिर से,

नव रूप सुसज्जित धर के।


स्नेह अमर, विश्वास अटल,

मुझमे है तेरा ही संबल।

अब अश्रु नहीं बहाऊँगा,

हर पल में तुझको पाऊँगा।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

यादों की ख़ुशबू

तेरी यादों की खुशबू से

महके घर का कोना-कोना,

चाँद सितारे दीप जलाए

नींद जगाए नर्म बिछौना।


सुंदर स्वप्न सुनहरी रातें

खामोशी के किस्से गाती,

तेरी मुस्कानों की कलियाँ

मुरझाई सी नम हो जाती।


हँसने-गाने वाले दिन की

दुःख पहुँचाने वाले दिन की,

तस्वीरों के तहखाने में

तस्वीरों की न कोई गिनती।


मन घबराए विचलित होकर

सूनी कलाई छूकर रोकर,

तुझको पुकारे आ जा आ जा

दूर न जा तू मेरी होकर।


एक तू ही मुझको पहचाने

बाकी सब लगते अनजाने,

ग़म की काली रात जो बढ़ती

तुम प्रभा सी आती जगाने।


यूँ तो तुम हर पल दिल मे हो

फिर भी व्याकुल क्यों मन मेरा,

बाँट सका ना ग़म क्यों तेरा

क्यों ना हो पाया मैं तेरा।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो कैसे जानोगे तुमने देखा ही नही अपने अंतर्मन में कभी। हर्ष विषाद से आच्छादित अनंत असीमित किंतु अनुशासित बेहद सहज सरल धवल उज्...