*हम और तुम*
जहां की रंजिशों में प्रेम के
गीत रचेंगे हम और तुम
अब यादों के राजमहल में
रोज मिलेंगे हम और तुम
तुम्हारे सुरों के संगीत पर
थिरकता मिलेगा हर कोना
कमरे गलियारे चौखट
खिड़की आंगन और बिछौना
तुम्हारी कलम के इर्द गिर्द
टहलता चाँद
तुम्हारी कही हर बात
फक्र से बेझिझक दोहराऊंगा
स्नेह के झूले पर बैठ
तुझे हृदय से लगाऊंगा
उलझन की पुड़ियों में
रेशमी गांठ लगाएंगे हम और तुम
हर हाल में मुस्कुराते
नजर आएंगे हम और तुम।
...देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"