Tuesday, April 10, 2018

प्रेम और वियोग

हो जाती कैसे अनदेखी
गलतियां हुई सब ने देखी
कुछ तंज कसे
कुछ क्रोध किये
कुछ बात किये
कुछ शोध किये
निज प्रभुता का गुणगान किये
कुछ निंदा रस का पान किये ।।
नियम नीति के बाण चलाना
मुश्किल है उसको समझाना
वो अड़ी रही
वो डटी रही
सब के सम्मुख
वो खड़ी रही
निज अनुभव का संज्ञान लिए
चल पड़ती है मुस्कान लिए ।।
उपदेश ज्ञान के न देना
जैसे रहती, रहने देना
कुछ पूंछ रही
कुछ ढूंढ रही
वो देख रही
जो चाह रही
खुद पे ना ऐसे इतराना
जो दर्पण हो सम्मुख जाना ।।
उसको मत मानो बस उसमे
बंटी हुई है, मुझमे तुझमें
तुम रोते हो
वो रोती है
मैं रहता हूँ
वो होती है
खुद से यूँ जो दूर है हम तुम
बेबस और मजबूर है हम तुम ।।
बंट हर हिस्से में मुस्काना
आसान नही है बंट जाना
मिली जुली सी
खिली खिली सी
मधुर मृदुल सी
भली भली सी
क्षण भर का न समय गंवाना
जब भी पास बुलाये आना ।।
नही पराजित है अपराजित
काल गति है अति मर्यादित
करुण पुकार
वो अश्रुधार
हृदय विमुख
न सुने चीत्कार
विरह वियोग विक्षोभ रहेगा
जीवन भर अफ़सोस रहेगा ।।
..देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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