लिखने से
कम नही होती है
मेरी पीड़ा
फिर भी लिखती हूँ
शब्दों में बांध कर रख देती हूँ
पन्नों के बीच हिफाजत से।
तू खुदा है इसका मुझे ऐतबार है , तेरी बनाई हर शै से मुझको प्यार है, तू लाख ज़ख्म दे मुझे मार ही डाले न क्यों मैं ज़िन्दगी हूँ मौत से ग़म से कभी हारूंगी न।
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क्या तुम जानते हो
क्या तुम जानते हो कैसे जानोगे तुमने देखा ही नही अपने अंतर्मन में कभी। हर्ष विषाद से आच्छादित अनंत असीमित किंतु अनुशासित बेहद सहज सरल धवल उज्...
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स्वप्नों की पगडंडी छोड़ विरह कुंज से नाता तोड़, शब्द सुरभि चितराग भव मधुर मंद मधुमय मुस्काये। आखिर तुम गीतों में आए। सावन की रिमझिम फुहार ...
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अनल की लपट धधकती झपट देह कर भस्म निभाती रस्म हृदय उदगार जीव की पुकार पीर प्रतिकार खत्म चीत्कार कर्म का लेख नियति उल्लेख जिधर भी देख भ्रम मति...
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छोड़ गए तुम हमको तन्हा लेकिन इतना ध्यान रहे पीड़ा को मुस्काने दूंगी तुमको दूर न जाने दूंगी। बीच भंवर में तुमने छोड़ा हर बंधन हर नाता तोड़ा ...
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