मैंने लिखी अपनी पीड़ा
तो कुछ पीड़ाओं ने पढ़ा।
पढ़कर वे इकट्ठा हुईं
शहर के बीचों बीच
कंपनी बाग के
सबसे पुराने
वृक्ष की छांव के नीचे।
एक दूसरे से लिपट कर
वे रोईं
हाँ वे सब रोईं
बहुत रोईं
इतना रोईं कि
आकाश में उभर आये
काले बादल और
आकाश भी रो पड़ा
उनसे लिपट।
बारिश हुई
तो भीगते
चहकते
नजर आये
कुछ बच्चे
कुछ युवा
और कुछ बूढ़े।
मौसम में घुल गई
मिट्टी की सोंधी महक
धूल गई चेहरों पर छाई
मलिनता।
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