Friday, May 1, 2020

बात छोटी थी बड़ी हो गई

बात छोटी थी
बड़ी हो गई
वो लड़की
अपने पैरों पर
खड़ी हो गई
होना था वही
जो हुआ है अभी
फिर शोर क्यों है
कि गड़बड़ी हो गई।
तुम अहम के अधीन
भ्रम रच रहे नवीन
भूलकर मूल को
बांट रहे शूल को
तुम जो अस्तित्व हो
तो उससे ही अस्तित्व है
शक्ति के प्रतीत्व का
वह अभीष्ट तत्व है।
क्यो नही स्वीकारते
जो चिर सत्य है
तुम्हारे ही समान
उसका भी अमर्त्य है।
सृष्टि की संभावना को
अवरुद्ध क्यों कर रहे
जीवनी शक्ति को
क्रुद्ध क्यों कर रहे।
अपने ही लहू का रंग
अलग क्यों दिख रहा
कौन है अज्ञानता का
लेख जो लिख रहा।
विनाश ही प्रवृत्ति है
अहम और अज्ञान की
बाते सारी झूठ है
तुम्हारे स्वाभिमान की।
कृतज्ञता के भाव से
तुम्हे पुकारते हुए
आशीष दो उसे कि
वह आसमान को छुए।
गर्व से कहो कि
सब बंधनो से बरी हो गई
हां! वो लड़की
अपने पैरों पर खड़ी हो गई।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”

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